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‘प्लेग’ में एक जनसमूह पर महामारी के रूप में आई भीषण विपत्ति का और उससे आक्रान्त लोगों की वैयक्तिक और सामूहिक प्रतिक्रियाओं का चरम यथार्थवादी अंकन किया गया है, साथ ही सर्वग्रासी भय, आतंक, मृत्यु और तबाही के बीच अजेय मानवीय साहस की मार्मिक संघर्षगाथा भी प्रस्तुत की गई है।

About the Author

अल्बैर कामू (1913-1960) आधुनिक फ़्रेंच साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर और चिन्तक थे। उनके और ज्याँ-पाल सार्त्र के बीच हुई बहस को बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक-वैचारिक बहसों में शुमार किया जाता है। उन्हें 1957 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। ‘प्लेग’, ‘पतन’, ‘अजनबी’, ‘सुखी मृत्यु’, ‘पहला आदमी’ (उपन्यास); ‘निर्वासन और आधिपत्य’ (कहानी-संग्रह); ‘कालिगुला’, ‘न्यायप्रिय’, ‘अर्थदोष’ (नाटक) उनकी चर्चित कृतियाँ हैं। अनुवादकों के बारे में शिवदानसिंह चौहान (1918-2000) हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘आलोचना’ के सम्पादक भी रहे। उन्होंने और उनकी पत्नी विजय चौहान ने संयुक्त रूप से विश्व साहित्य की अनेक श्रेष्ठ कृतियों के अनुवाद किए जिनमें ‘जुर्म और सज़ा’ (दोस्तोयेव्स्की), ‘संघर्ष’ (चेखव), ‘एक औरत की ज़िन्दगी’ (मोपासां), ‘दो शहरों की दास्तान’ (चार्ल्स डिकेन्स), ‘प्लेग’ (कामू) आदि शामिल हैं।
9789390971848
out of stock INR 319
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Plague

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ISBN: 9789390971848
₹319
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Details
  • ISBN: 9789390971848
  • Author: Albert Camus
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 328
  • Format: Paperback
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Book Description

‘प्लेग’ में एक जनसमूह पर महामारी के रूप में आई भीषण विपत्ति का और उससे आक्रान्त लोगों की वैयक्तिक और सामूहिक प्रतिक्रियाओं का चरम यथार्थवादी अंकन किया गया है, साथ ही सर्वग्रासी भय, आतंक, मृत्यु और तबाही के बीच अजेय मानवीय साहस की मार्मिक संघर्षगाथा भी प्रस्तुत की गई है।

About the Author

अल्बैर कामू (1913-1960) आधुनिक फ़्रेंच साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर और चिन्तक थे। उनके और ज्याँ-पाल सार्त्र के बीच हुई बहस को बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक-वैचारिक बहसों में शुमार किया जाता है। उन्हें 1957 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। ‘प्लेग’, ‘पतन’, ‘अजनबी’, ‘सुखी मृत्यु’, ‘पहला आदमी’ (उपन्यास); ‘निर्वासन और आधिपत्य’ (कहानी-संग्रह); ‘कालिगुला’, ‘न्यायप्रिय’, ‘अर्थदोष’ (नाटक) उनकी चर्चित कृतियाँ हैं। अनुवादकों के बारे में शिवदानसिंह चौहान (1918-2000) हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘आलोचना’ के सम्पादक भी रहे। उन्होंने और उनकी पत्नी विजय चौहान ने संयुक्त रूप से विश्व साहित्य की अनेक श्रेष्ठ कृतियों के अनुवाद किए जिनमें ‘जुर्म और सज़ा’ (दोस्तोयेव्स्की), ‘संघर्ष’ (चेखव), ‘एक औरत की ज़िन्दगी’ (मोपासां), ‘दो शहरों की दास्तान’ (चार्ल्स डिकेन्स), ‘प्लेग’ (कामू) आदि शामिल हैं।

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