फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ 1969 से 1973 तक भारतीय सेना के अध्यक्ष रहे। यह किताब सैम के जीवन, व्यवहार की विशेषताओं, विनोदप्रियता, नैतिक एवं पेशेवर साहस और वह रहस्य चित्रित करती है, जिसने उनके व्यक्तित्व को इस प्रकार गढ़ा। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी विनम्रता, उनकी ईमानदारी और पद की परवाह किए बिना सेना के हर व्यक्ति के लिए सम्मान के भाव को प्रदर्शित करती है।
घटनाओं से भरी यह किताब पढ़ने में आसान है, क्योंकि यह उनके बचपन से लेकर कीर्ति के शिखर तक पाठक को साथ लेकर चलती है। एक व्यक्तिगत जीवन गाथा के साथ राजनैतिक ताने-बाने को ऐसे बुना गया है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि कैसे एक बेहतरीन सैन्य रणनीतिकार ने भारतीय उपमहाद्वीप का नक़्शा ही बदल दिया। पारिवारिक चित्र, हस्तलिखित टिप्पणियाँ और व्यक्तिगत पत्र व्यवहार ने इस किताब को अतिपठनीय और संग्रहणीय निधि बना दिया है। यह किताब सैम के जीवन की विशिष्ट उपलब्धियों का वर्णन करती है।
ब्रिगेडियर बेहराम एम. पंथकी ने 8वीं गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन को कमांड किया, बतौर जम्मू और कश्मीर में 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड मुख्यालय में ब्रिगेड मेजर रहे। वे लद्दाख़ में 3 इन्फैंट्री डिवीज़न मुख्यालय में कर्नल जनरल स्टाफ रहे। दिल्ली में 35 इन्फैंट्री ब्रिगेड को कमांड किया और राजस्थान में 12 कॉर जनरल स्टाफ़ के ब्रिगेडियर जनरल स्टाफ़ रहे। उन्होंने सेना मुख्यालय में पद-नियुक्तियों का काम सँभाला तथा वॉर कॉलेज माहो और डिफेंस सर्विस स्टाफ़ कॉलेज वेलिंगटन में प्रशिक्षण दिया। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य सेना अध्यक्ष के ए डी सी के रूप में काम करना रहा। इस कार्य के दौरान, उन्होंने सैम के विशिष्ट व्यक्तित्व को क़रीब से देखा तथा उच्च स्तर पर योजनाओं को बनाने और फ़ैसले लेना सीखा। वह अब वाशिंगटन डी सी में रहते हैं और किंगस्बरी सेंटर मानव संस्थान के निदेशक भी रहे हैं।
ज़िनोबिया पंथकी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद आई बी एम से अपना कैरियर शुरू किया। 1973 से 1984 तक उन्होंने पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ निभाईं। फिर 1984 में उन्होंने विश्व बैंक में काम करना शुरू किया। 1994 में उनका स्थानांतरण अमेरिका में हो गया। वर्ष 2012 में वहाँ से सेवानिवृत्त हुईं और आज भी वे उनके परामर्शदात्री के रूप में काम कर रही हैं। मौजूदा समय में वह वाशिंगटन डी सी में रहती हैं।
TRANSLATOR:
कानपुर में जन्मे अक्षय कुमार ने शिक्षा दीक्षा कानपुर एवं लखनऊ में पूरी की। यह लगभग 30 वर्षों से पकारिता से जुड़े हैं। इतिहास में विशेष रुचि के साथ विभिन्न विषयों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं।
फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ 1969 से 1973 तक भारतीय सेना के अध्यक्ष रहे। यह किताब सैम के जीवन, व्यवहार की विशेषताओं, विनोदप्रियता, नैतिक एवं पेशेवर साहस और वह रहस्य चित्रित करती है, जिसने उनके व्यक्तित्व को इस प्रकार गढ़ा। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी विनम्रता, उनकी ईमानदारी और पद की परवाह किए बिना सेना के हर व्यक्ति के लिए सम्मान के भाव को प्रदर्शित करती है।
घटनाओं से भरी यह किताब पढ़ने में आसान है, क्योंकि यह उनके बचपन से लेकर कीर्ति के शिखर तक पाठक को साथ लेकर चलती है। एक व्यक्तिगत जीवन गाथा के साथ राजनैतिक ताने-बाने को ऐसे बुना गया है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि कैसे एक बेहतरीन सैन्य रणनीतिकार ने भारतीय उपमहाद्वीप का नक़्शा ही बदल दिया। पारिवारिक चित्र, हस्तलिखित टिप्पणियाँ और व्यक्तिगत पत्र व्यवहार ने इस किताब को अतिपठनीय और संग्रहणीय निधि बना दिया है। यह किताब सैम के जीवन की विशिष्ट उपलब्धियों का वर्णन करती है।
ब्रिगेडियर बेहराम एम. पंथकी ने 8वीं गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन को कमांड किया, बतौर जम्मू और कश्मीर में 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड मुख्यालय में ब्रिगेड मेजर रहे। वे लद्दाख़ में 3 इन्फैंट्री डिवीज़न मुख्यालय में कर्नल जनरल स्टाफ रहे। दिल्ली में 35 इन्फैंट्री ब्रिगेड को कमांड किया और राजस्थान में 12 कॉर जनरल स्टाफ़ के ब्रिगेडियर जनरल स्टाफ़ रहे। उन्होंने सेना मुख्यालय में पद-नियुक्तियों का काम सँभाला तथा वॉर कॉलेज माहो और डिफेंस सर्विस स्टाफ़ कॉलेज वेलिंगटन में प्रशिक्षण दिया। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य सेना अध्यक्ष के ए डी सी के रूप में काम करना रहा। इस कार्य के दौरान, उन्होंने सैम के विशिष्ट व्यक्तित्व को क़रीब से देखा तथा उच्च स्तर पर योजनाओं को बनाने और फ़ैसले लेना सीखा। वह अब वाशिंगटन डी सी में रहते हैं और किंगस्बरी सेंटर मानव संस्थान के निदेशक भी रहे हैं।
ज़िनोबिया पंथकी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद आई बी एम से अपना कैरियर शुरू किया। 1973 से 1984 तक उन्होंने पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ निभाईं। फिर 1984 में उन्होंने विश्व बैंक में काम करना शुरू किया। 1994 में उनका स्थानांतरण अमेरिका में हो गया। वर्ष 2012 में वहाँ से सेवानिवृत्त हुईं और आज भी वे उनके परामर्शदात्री के रूप में काम कर रही हैं। मौजूदा समय में वह वाशिंगटन डी सी में रहती हैं।
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कानपुर में जन्मे अक्षय कुमार ने शिक्षा दीक्षा कानपुर एवं लखनऊ में पूरी की। यह लगभग 30 वर्षों से पकारिता से जुड़े हैं। इतिहास में विशेष रुचि के साथ विभिन्न विषयों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं।
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