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9780143424529 60ad0253f4c43e121715633a Ishqiyapa //d2pyicwmjx3wii.cloudfront.net/s/607fe93d7eafcac1f2c73ea4/60ad0254f4c43e12171563a7/9780143424529-us.jpg चाईबासा, थोड़ा सोया सा, थोड़ा खोया सा शहर। झारखंड के इसी शहर में बड़ा हो रहा था पंकज दुबे। अपने नाम से नाखुश। उसे लगता था कि उसके मां बाप ने उसका नाम बस अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिए रख दिया था। नाम बहुत आॅर्डिनरी लगता था इसलिए वो अपनी जि़ंदगी में सब कुछ एक्स्ट्रा आॅर्डिनरी करना चाहता था! एक बार उसने अपनी पहली गर्लफ्रेंड की मां को इंप्रेस करने के लिए वहां के सब्ज़ी बाजार ‘मंगलाहाट' से एक झोला नींबू खरीदकर गिफ्ट कर दिया। मां ने अचार बनाया और गर्लफ्रंेड ने विचार बनाया। विचार था ‘ब्रेकअप' का। बचपन में उसका ज़्यादा वक़्त मिथुन की ब्रेक डांस स्टेप्स की नकल करने मेें बीता। स्कूल में डिबेटिंग का हीरो था लेकिन आर्यभट्ट के आशीर्वाद से मैथ्स में बिलकुल ज़ीरो था। वास्कोडिगामा बनने के लिए हायर स्टडी की याद आने पर पहले दिल्ली पहुंचा, ग्रेजुएशन के लिए और फिर लंदन मास्टर्स के नाम पर। कभी वो दिल्ली के मुखर्जी नगर के एक सडि़यल फ्लैट में अपने चार आईएएस एस्पिरेंट दोस्तों के साथ रहा तो कभी इंगलैंड में पेशे से एक टाॅयलेट क्लीनर मकान मालकिन के घर का पेइंग गेस्ट बना। बीबीसी में पहली नौकरी मिली। खबर पढ़ने के दौरान, वो अपना मोबाइल फोन बंद करना भूल गया। न्यूज़ के बदले पूरी दुनिया ने उसका रिंगटोन सुना ‘साथिया, साथिया, मद्धम मद्धम सी है तेरी हंसी।' दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी ने उसकी कहानी ‘मुखौटा' के लिए उसे ‘नवोदित लेखक अवाॅर्ड' दिया, जिसे आज भी उसकी सास ने घर के शोकेस में लगाकर रखा है। अराइव करने से ज़्यादा उसे ट्रैवल करना पसंद है। अभी फिलहाल उसका डेस्टिनेशन है ‘मुंबई' जहां टीवी और फिल्म राइटिंग में वो अपने एक्सपेरिमेंट्स कर रहा है। ये नाॅवेल भी उन एक्सपेरिमेंट्स का हिस्सा हो ना हो किस्सा ज़रूर है 9780143424529
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Ishqiyapa

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ISBN: 9780143424529
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Details
  • ISBN: 9780143424529
  • Author: Pankaj Dubey
  • Publisher: Penguin
  • Pages: 238
  • Format: Paperback
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Book Description

चाईबासा, थोड़ा सोया सा, थोड़ा खोया सा शहर। झारखंड के इसी शहर में बड़ा हो रहा था पंकज दुबे। अपने नाम से नाखुश। उसे लगता था कि उसके मां बाप ने उसका नाम बस अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिए रख दिया था। नाम बहुत आॅर्डिनरी लगता था इसलिए वो अपनी जि़ंदगी में सब कुछ एक्स्ट्रा आॅर्डिनरी करना चाहता था! एक बार उसने अपनी पहली गर्लफ्रेंड की मां को इंप्रेस करने के लिए वहां के सब्ज़ी बाजार ‘मंगलाहाट' से एक झोला नींबू खरीदकर गिफ्ट कर दिया। मां ने अचार बनाया और गर्लफ्रंेड ने विचार बनाया। विचार था ‘ब्रेकअप' का। बचपन में उसका ज़्यादा वक़्त मिथुन की ब्रेक डांस स्टेप्स की नकल करने मेें बीता। स्कूल में डिबेटिंग का हीरो था लेकिन आर्यभट्ट के आशीर्वाद से मैथ्स में बिलकुल ज़ीरो था। वास्कोडिगामा बनने के लिए हायर स्टडी की याद आने पर पहले दिल्ली पहुंचा, ग्रेजुएशन के लिए और फिर लंदन मास्टर्स के नाम पर। कभी वो दिल्ली के मुखर्जी नगर के एक सडि़यल फ्लैट में अपने चार आईएएस एस्पिरेंट दोस्तों के साथ रहा तो कभी इंगलैंड में पेशे से एक टाॅयलेट क्लीनर मकान मालकिन के घर का पेइंग गेस्ट बना। बीबीसी में पहली नौकरी मिली। खबर पढ़ने के दौरान, वो अपना मोबाइल फोन बंद करना भूल गया। न्यूज़ के बदले पूरी दुनिया ने उसका रिंगटोन सुना ‘साथिया, साथिया, मद्धम मद्धम सी है तेरी हंसी।' दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी ने उसकी कहानी ‘मुखौटा' के लिए उसे ‘नवोदित लेखक अवाॅर्ड' दिया, जिसे आज भी उसकी सास ने घर के शोकेस में लगाकर रखा है। अराइव करने से ज़्यादा उसे ट्रैवल करना पसंद है। अभी फिलहाल उसका डेस्टिनेशन है ‘मुंबई' जहां टीवी और फिल्म राइटिंग में वो अपने एक्सपेरिमेंट्स कर रहा है। ये नाॅवेल भी उन एक्सपेरिमेंट्स का हिस्सा हो ना हो किस्सा ज़रूर है

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